बचपन में बैलगाड़ी चलाने वाले इस शख्स ने भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन चलाई, पढ़िए रोचक कहानी

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कोई नहीं जानता कब किसकी मेहनत रंग लाएगी और एक साधरण सा व्यक्ति भी सफलता का मिसाल बन जाएगा। आज हम साधारण सा बैलगाड़ी हांकने वाले एक मजदूर के बारे में बात कर रहे हैं, जो एयरलाइंस का मालिक रह चुके हैं। दरअसल हम बात कर रहें हैं कैप्टन गोपीनाथन की। एक गरीब भी हवाई जहाज में सफर कर पाया तो यह सिर्फ उनके ही बदौलत। उन्होंने हवाई सफर को सस्ता बनाया। हालंकि उनका खुद का यह सफर बहुत सी चुनौतियों से भरा था। साउथ इंडियन फिल्म के स्टार सूर्या Amazon Prime पर कैप्टन गोपीनाथन के जीवन पर आधारित फिल्म “सोरारई पोटरू” लेकर आए हैं, जिसमें उनके जीवन के संघर्ष को दुनिया के सामने लाया गया। – Air Deccan founder Army Captain G.R. Gopinath’s struggle in life.

गोपीनाथ की ऑटोबायोग्राफी पर बन चुकी है फिल्म

साउथ इंडियन की यह फिल्म एयरलाइंस कंपनी ऐयर डेक्कन के संस्थापक आर्मी कैप्टन जी.आर. गोपीनाथ की ऑटोबायोग्राफी “सिम्पली फ्लाई” पर आधारित हैं। गोरूर रामास्वामी अयंगर गोपीनाथ का जन्म साल 1951 में कर्नाटक के गोरूर के एक छोटे से गांव में हुआ था। साधारण से परिवार में जन्में गोपीनाथ के 8 भाई-बहन थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह सभी बच्चों को एक बेहतर भविष्य दे पाएं। हालांकि उनके पिता काफी मेहनत करते थे, वह स्कूल शिक्षक होने के साथ खेती और वे कन्नड़ उपन्यासकार भी थे। गोपीनाथ की पढ़ाई की शुरूआती उनके घर से हुई। 5वीं क्लास में पहली बार गोपीनाथ एक कन्नड़ स्कूल में गए। इस दौरान वह स्कूल जाने के साथ ही अपने पिता के काम में मदद भी किया करते थे।
8 सालों तक कि देश की सेवा

जब घर में पैसों की जरुरत पड़ी तो गोपीनाथ बचपन में ही बैलगाड़ी चलाना शुरू कर दिया। उनका कहना है कि एक किसान के घर या तो किसान पैदा होता है या फिर सिपाही। ऐसे में अब उनके लिए बाकी था सिपाही बनना। इस दिशा में आगे बढने के लिए गोपीनाथ साल 1962 में बीजापुर स्थित सैनिक स्कूल में दाखिला ले लिए और वहीं से राष्ट्रीय रक्षा अकादमी परीक्षा पास की। गोपीनाथ ने भारतीय सेना से जुड़कर 8 साल तक देश की सेवा किए। इस दौरान वह 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में हिस्सा भी लिए, लेकीन 28 साल की उम्र में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद सबसे बड़ी समस्या थी घर की जिम्मेदारी। इसके लिए गोपीनाथ ने डेयरी फार्मिंग, रेशम उत्पादन, पोल्ट्री फार्मिंग, होटल, एनफील्ड बाइक डील, स्टॉकब्रोकर जैसे कई काम किए लेकिन सफलता नहीं मिली।

एक घटना से प्रेरित होकर उन्होंने किया अपना बिजनेस शुरू करने का फैसला

गोपीनाथ अपनी किताब में एक वाक्य का जिक्र करते हुए बताए हैं कि साल 2000 में ​वह अपनी परिवार के साथ अमेरिका के फीनिक्स में हॉलीडे पर थे। इसी दौरान एक दिन वह बालकनी में बैठे चाय पी रहे थे और उनके सिरे की उपर से हवाई जहाज गुजरा। कुछ ही देर में एक और हवाई जहाज ओर फिर घंटे भर में 4-5 हवाई जहाज गुजरे। यह उनके लिए आश्चर्य से भरा था क्योंकि उन दिनों भारत में हवाई सेवाएं इतनी अच्छी नहीं थी। इसका कारण जानने के लिए उन्होंने फीनिक्स के एक स्थानीय एयरपोर्ट के बारे में पता किया, जो अमेरिका के टॉप एयरपोर्ट में शामिल भी नहीं था, लेकिन वहां से एक हजार हवाईजहाज उड़ान भरती थी। उस समय में अमेरिका में एक दिन में 40,000 कमर्शियल उड़ानें चलती जबकि भारत में केवल 420।

इस तरह हुई एयर डेक्कन की शुरुआत

इसी से गोपीनाथ ने अपना बिजनस प्लान बना लिया। उनका मानना था कि बसों और ट्रेनों में चलने वाले तीन करोड़ लोगों में से सिर्फ 5 फीसदी लोग हवाई जहाज़ों से सफर करें तो विमानन बिजनेस अच्छा चल सकता है। इसी दौरान गोपीनाथ ने 20 करोड़ मिडल क्लास लोगों के हित में सोचते हुए एविएशन फील्ड में कदम रखे। इस दौरान उनके लिए सबसे मुश्किल काम था पैसों का इंतजाम करना।

इस परिस्थिति में गोपीनाथ की प​त्नी, उनके दोस्तों साथ ही ​परिवार वालो ने भी उनकी पूरी मदद की। इससे पहले साल 1996 में कैप्टन गोपीनाथ एक चार्टर्ड हेलीकाप्टर सेवा शुरू कर चुके थे, लेकिन अब समय था हवाई जहाज का। अगस्त 2003 में कैप्टन गोपीनाथ ने 48 सीटों और दो इंजन वाले छह फिक्स्ड-विंग टर्बोप्रॉप हवाई जहाज़ों के बेड़े के साथ एयर डेक्कन की स्थापना की। – Air Deccan founder Army Captain G.R. Gopinath’s struggle in life.

कम रेट में उपलब्ध करवाई सारी सुविधाएं

गोपीनाथ की हवाई जहाज की पहली उड़ान दक्षिण भारतीय शहर हुबली से बेंगलुरु तक के लिए भरी। उस वक्त केवल दो हजार लोग कंपनी के विमानों में हवाई सफर कर रहे थे, लेकिन केवल 4 साल में यात्रियों की संख्या बढ़कर 25,000 तक पहुंच गई। साल 2007 में वह समय आ चुका था जब देश के 67 हवाई अड्डों से एक दिन में इस कंपनी की 380 उड़ानें चलाई जा रही थीं और कंपनी के पास कुल 45 विमान हो चुके थे।

गोपीनाथ नो-फ्रिल एप्रोच को फ़ॉलो करते हुए ग्राहकों को अन्य एयरलाइन की तुलना में आधे दर पर टिकट देने लगे, जिसमें सारी सुविधाएं भी शामिल थी। इसके अलावा उन्होंने अपने यात्रियों को 24 घंटे कॉल सेंटर की सेवा उपलब्ध कराई, जिससे वह किसी भी समय टिकट बुक कर सकते हैं। बता दें कि इसके पहले भारत में ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

एयर डेक्कन को विजय माल्या ने खरीद लिया

गोपीनाथ का यह बिजनस काफी अच्छा चल रहा था, लेकिन साल 2007 के अंत में कई और कंपनियां भी एविएशन फील्ड में कदम रखी। उन्होनें भी गोपीनाथ की ट्रिक अपना कर मार्किट में अपनी जगह बना ली। अब एयर डेक्कन को दूसरी विमान कंपनियों से टक्कर मिलना शुरू हो गया, जिससे कंपनी को घाटा होने लगा। सब कुछ खत्म होने से पहले गोपीनाथ ने एयर डेक्कन को शराब के कारोबारी विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर द्वारा बेच दिया। अब माल्या ने एयर डेक्कन का नया नाम रखा किंगफिशर रेड। गोपीनाथ को इस बात की तसल्ली थी कि भले ही वह एयर डेक्कन के साथ नहीं हैं, लेकिन उनका सपना हवाई उड़ान भरता रहेगा। हालांकि माल्या ऐसा करने में सफल नहीं हुए और कंपनी साल 2013 में बंद हो गई।

गोपीनाथ में अब भी जारी है सस्ती उड़ान सेवा की क्रांति

साल 2012 में कैप्टन गोपीनाथ ने बताया कि माल्या के पास कंपनी के लिए कभी वक्त था ही नही था। उनके अनुसार अगर वह कंपनी पर ध्यान दिए होते तो इस क्षेत्र में उनसे बेहतर कोई और नहीं था। कंपनी बंद होने के बाद साल 2014 में गोपीनाथ लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन इसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिल पाई। रिर्पोट के अनुसार साल 2017 में उन्होंने अपनी दूसरी किताब “यू मिस नॉट दिस फ्लाइट: एसेज ऑन इमर्जिंग इंडिया” लिखी। आज गोपीनाथ अपने परिवार के साथ बेंगलुरू में रहते हैं। अब उनका कहना हैं कि “एयर डेक्कन का सपना अब भी जीवित है और सस्ती उड़ान सेवा के लिए क्रांति अभी जारी है। गोपीनाथ का पूरा जीवन ही संघर्ष से भरा रहा, परंतु उन्होंने कभी हार नहीं माना। – Air Deccan founder Army Captain G.R. Gopinath’ struggle in her life

 


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