भारत की मदद के बिना बांग्लादेश को स्वतंत्र कर पाना संभव नहीं होता : मेयर मोहिउद्दीन अहमद

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ढाका: भारतीय सेना की प्रत्यक्ष भागीदारी के बिना बांग्लादेश को सौ साल में भी स्वतंत्र कर पाना संभव नहीं होता। बांग्लादेश में पटुआखली नगर पालिका के मेयर मोहिउद्दीन अहमद ने उक्त बात कही है। उनके अनुसार, सौ साल में भी बांग्लादेश को पाकिस्तानी सैनिकों के हाथों से मुक्त करना संभव नहीं होता अगर भारत के बहादुर सैनिकों ने हवाई, समुद्री और जमीन से सीधे पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी होती। अहमद ने हिन्दुस्थान समाचार से खास बातचीत में भारत-बांग्लादेश के प्रगाढ़ संबंधों पर कई बड़ी बातें कही हैं।

वह बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारत के योगदान का सही इतिहास पेश करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। वह 1952 के भाषा आंदोलन से लेकर पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण तक के ऐतिहासिक क्षणों को विभिन्न चित्रों और मूर्तियों को स्थापित करके उजागर करने के अपने प्रयासों को जारी रखे हुए है। पटुआखली जिले के विभिन्न स्थानों में कुछ दुर्लभ पेंटिंग और मूर्तियां स्थापित की गई हैं। इन सभी में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की उंगलियां उठाकर भाषण देना और पाकिस्तान के आक्रमणकारियों के आत्मसमर्पण की पेंटिंग आदि शामिल हैं।

यह पूछे जाने पर कि इन दुर्लभ मूर्तियों और चित्रों को क्यों स्थापित किया गया, मेयर मोहिउद्दीन अहमद ने कहा कि बांग्लादेश के निर्माण के महान नायक बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश पर कट्टरपंथी स्वतंत्रता विरोधियों ने कब्जा कर लिया था। आज भी मजहबी प्रचार के नाम पर आजादी के इतिहास को मिटाने के लिए तरह-तरह के दुष्प्रचार हो रहे हैं। नवीनतम जमात-ए-इस्लामी स्वतंत्रता-विरोधी समूह बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में बंगबंधु और भारत के योगदान को मिटाने के लिए यू-ट्यूब सहित विभिन्न सोशल मीडिया में झूठा प्रचार कर रहे हैं। यू-ट्यूब पर यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि भारतीय सेना ने उस समय मुक्ति संग्राम में भाग लिया था जब स्वतंत्रता सेनानी बांग्लादेश को लगभग मुक्त कर रहे थे। लेकिन हकीकत यह है कि अगर भारत के वीर सैनिक पाकिस्तान की सेना के खिलाफ सीधे हवाई, समुद्री और जमीन से नहीं लड़ते, तो सौ साल में भी बांग्लादेश को आक्रमणकारियों के हाथों से मुक्त करना संभव नहीं होता।

अहमद ने यह भी कहा कि विभिन्न प्रचारों के बावजूद इन मूर्तियों और चित्रों को इसलिए लगाया गया है ताकि नई पीढ़ी इतिहास की सच्चाई से अवगत रहे। यह पूछे जाने पर कि क्या मूर्तियों और चित्रों का कोई नामकरण किया गया है, मेयर ने कहा कि जिला आयुक्त भवन के सामने चौराहे का नाम ”स्वाधीनता चौक” रखने पर विचार किया जा रहा है। बाकी दो स्मारकों के नाम अभी तय नहीं हुए हैं। हालांकि नामकरण का मामला काफी हद तक जिला परिषद की मंजूरी पर निर्भर है।

नामकरण के बारे में पूछे जाने पर पटुआखाली जिला परिषद के अध्यक्ष वकील मो. हाफिजुर रहमान ने कहा कि मेयर ने अच्छी पहल की है। नवनिर्वाचित जिला परिषद के सदस्य पहले सत्र में ही नामों को मंजूरी देने की व्यवस्था करेंगे। उन्होंने कहा ऐसी मूर्तियां, पेंटिंग और स्मारक हर जिले और उप जिो में महत्वपूर्ण चौराहों पर स्थापित किए जाने चाहिए।

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