ऐसा वट वृक्ष जहां ध्यान लगाने से मिलती है बीमारियों से मुक्ति

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प्रयागराज: प्रयागराज में गंगा मईया के तट स्थित एक ऐसा वट वृक्ष है, जहां पर सिर्फ ध्यान लगाने मात्र से कई बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है। इसके गोद में बैठकर भारतीय ही नहीं विदेशी श्रद्धालु भी बीमारियों से मुक्ति पाते हैं। यहां बैठने मात्र से ही एक अलग दिव्यानुभूति व आन्तरिक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। इसकी लताएं कई एकड़ में फैली हुई हैं। इसकी बढ़ती लताओं के कारण आश्रम के मुख्य द्वार को भी बंद करना पड़ा। यह वट वृक्ष मां गंगा के तट स्थित क्रियायोग आश्रम झूंसी के आध्यात्मिक परिसर में स्थित हैं।

 

इस परिसर में दो दिव्य वट वृक्ष हैं, जिसकी महत्ता ऐसी है कि सिर्फ ध्यान लगाने मात्र से बड़ी-बड़ी बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है। इसकी छांव पाने के लिए इस आश्रम में कई विदेशी कई-कई महिने डेरा डाले हुए हैं।

संस्थान की सड़कों पर ही फैली जड़े, रास्ता किया बन्द

इस वटवृक्ष की खासियत यह है कि इसकी जड़ें क्रियायोग आश्रम में ऐसी फैली हैं कि आश्रम के अंदर की सड़कों को बंद करना पड़ा है। आश्रम के संस्थापक सत्यम् योगी महाराज ने वृक्ष का नुकसान न करते हुए उक्त रास्ते को ही बन्द कर दिया। जिस ओर बैठकर लोग ध्यान आदि लगाते हैं उस ओर वृक्ष नहीं बढ़ रहा है, अपितु दूसरी ओर वृक्ष अपना फैलाव लिए हुए है। सत्यम् योगी महाराज ने बताया कि यहां बहुत पुराने नाग आदि रहते हैं जो रात्रि विचरण करते हैं, लेकिन किसी कर्मचारी को नुकसान नहीं पहुंचाते।

-1894 में वटवृक्ष के नीचे मिली थी ‘स्वामी’ की उपाधि

वटवृक्ष के बारे में सत्यम् योगी महाराज ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि मृत्युंजय श्रीश्री महावतार बाबा ने सन् 1894 में आयोजित कुम्भ के समय क्रियायोग आश्रम के आध्यात्मिक प्रांगण स्थित विशालकाय वटवृक्ष तले ज्ञानावतार स्वामी युक्तेश्वर गिरी को प्रथम दर्शन देकर ‘स्वामी’ की उपाधि से विभूषित किया। साथ ही सनातन धर्म और बाइबिल में निहित एकता को दर्शाते हुए एक आध्यात्मिक सद्ग्रंथ लिखने का निर्देश दिया। जो ‘कैवल्य दर्शनम्’- ‘दि होली साइन्स’ के नाम से प्रसिद्ध है।

-क्रियायोग की स्थापना 1983 में हुई

क्रियायोग के ज्ञान को जनमानस में प्रसारित करने के लिए योगी सत्यम् महाराज ने 1983 में क्रियायोग संस्थान की स्थापना की। जिसका शिलान्यास 20 सितम्बर, 1987 को जिलाधिकारी प्रभात चन्द्र चतुर्वेदी ने किया। योगी सत्यम् महाराज ने बताया कि उस समय वटवृक्ष को लोग बहुत नुकसान करते थे। जिसके कारण यह केवल ठूंठ बनकर रह गया। इसके उपरान्त उन्होंने वहां आवागमन बंद कर दिया और उसकी निरंतर सेवा में लगे रहते थे। जिससे आज वह वटवृक्ष अपना पांव पसार रहा है। उसकी जड़ों के चारों तरफ मिट्टी से पाटा गया। उसकी पत्तियों व टहनियों को न तोड़ा जाए इसके लिए उचित व्यवस्था की गयी। आसपास स्थित कमरों को हटाया गया, जिससे वटवृक्ष को हवा, पानी व प्रकाश आदि मिल सके और उसका विकास हो। जिससे आज उसका स्वरूप दिव्य हो गया है।

उन्होंने बताया कि यह विश्व की पहली संस्था है जहां आज भारत के विभिन्न प्रदेशों के साथ-साथ अमेरिका, कनाडा, यूरोप, सिंगापुर, ब्राजील आदि देशों के लोग आकर रहते हैं। इस आश्रम में आए हुए लोगों को यहां बड़ा सकून मिलता है और वह यहीं के होकर रह जाते हैं।

– निःशुल्क व्यवस्था में चल रहा संस्थान

यह पहली आध्यात्मिक संस्था है जो स्थापना के प्रथम दिन से आज तक पूर्णतया निःशुल्क सेवाएं प्रदान कर रही है। यहां पर आरती, चढ़ावा, दान दक्षिणा आदि के नाम पर किसी भी प्रकार का धन एकत्रित नहीं किया जाता है। संस्थान के खर्च के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि जो विदेशों से आकर लोग यहां रह रहे हैं, वे ही संस्थान को देते रहते हैं। लेकिन इसके लिए किसी से कभी कोई मांग नहीं की जाती। लोग स्वेच्छा से देते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार माघ मेला में दान पत्र बनवाया था। जिसमें कुछ लोग स्वेच्छा से दान कर देते थे, लेकिन जिनके पास नहीं होता था तो वे मुंह छिपाकर चुपचाप चले जाते थे। सत्यम् योगी ने कहा कि उसी दिन से हमने दानपत्र बन्द करवा दिया कि लोग यहां आकर मुंह न छिपाएं।

– मनुष्य की शारीरिक व मानसिक बीमारियां होती है समाप्त

सत्यम् योगी ने बताया कि क्रियायोग ध्यान षटचक्र भेदन की क्रिया है। इसके जागरण पर मनुष्य की सभी शारीरिक व मानसिक बीमारियां समाप्त हो जाती हैं। इससे अन्तःकरण में सुषुप्त आध्यात्मिक ज्ञान का जागरण हो जाता है। उन्होंने बताया कि कनाडा में इन्हीं सेवाओं के कारण डॉक्टरों ने 40 एकड़ का आश्रम बनाकर दान के स्वरूप में प्रदान किया है।

उल्लेखनीय है कि, प्रयागराज में किला के अंदर स्थित वटवृक्ष है, जिसे प्रदेश सरकार ने आम लोगों के दर्शन के लिए खोला है। इसके साथ ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बहुत पुराना एक वटवृक्ष है। लेकिन क्रियायोग आश्रम में दो वटवृक्ष हैं, जो विस्तार लिए हुए है। सत्यम् योगी महाराज ने कहा कि लोग कहीं पत्ता तो कहीं टहनी आदि तोड़ते रहते हैं, इसलिए अंदर जाने पर पाबंदी लगा दी है। केवल ध्यान लगाने वाले ही वहां जाते हैं, अन्य लोगों का जाना वर्जित रहता है।

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